डायबिटीज (मधुमेह)
डायबिटीज को मधुमेह भी कहा जाता हैं, जो तेजी से बढ़ती जा रही एक स्वास्थ्य समस्या है, जो किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकती हैं। डायबिटीज के कई रूप हैं। इनमें डायबिटीज टाइप 2 सबसे आम है। डायबिटीज के ईलाज के साथ-साथ स्वस्थ जीवनशैली इससे होने वाली जटिलताओं को रोकने के लिए मददगार हो सकती है।
टाइप 2 डायबिटीज सबसे सामान्य रूप है। डायबिटीज मरीजों मे 90% से 95% मरीज टाइप 2 डायबिटीज से प्रभावित है। संयुक्त राज्य में लगभग 37.3 मिलियन लोगों को डायबिटीज है, जो वहां की जनसंख्या का लगभग 11% है। आईसीएमआर के अध्ययन के अनुसार, भारत में 10 करोड़ से भी ज्यादा लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। दुनिया भर में लगभग 537 मिलियन वयस्कों को मधुमेह है। अनुमान के मुताबिक यह संख्या 2030 तक बढ़कर 643 मिलियन और 2045 तक 783 मिलियन हो जाएगी।
मधुमेह या डायबिटीज एक ऐसी स्थिति है, जब अग्न्याशय या पैनक्रियाज पर्याप्त इंसुलिन या बिल्कुल नहीं बना पाता, तो ब्लड मे ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है। ब्लड मे ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने से शरीर मे कई तरह की समस्या उत्पन्न हो जाती है, जिसकी चर्चा इस लेख मे हम आगे करने वाले हैं। डायबिटीज किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है। ग्लूकोज (चीनी) मुख्य रूप से भोजन और पेय पदार्थों में मौजूद कार्बोहाइड्रेट से आता है। यह शरीर की ऊर्जा का स्रोत है। ब्लड "ग्लूकोज" को उर्जा के रुप में उपयोग करने के लिए शरीर की सभी कोशिकाओं तक लेकर जाता है।
डायबिटीज के कारण :-
1 हाई ब्लड ग्लूकोज (High Blood Glucose)
ब्लड फ्लो के माध्यम से ग्लूकोज को शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंचाने एवं ब्लड में ग्लूकोज की मात्रा नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन हार्मोन की जरूरत होती है। यदि अग्न्याशय पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता है या शरीर इसका ठीक से उपयोग नहीं करता है, तो ब्लड में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है। जिस हाईपरग्लाइसीमिया (Hyperglycemia) कहते है। समय के साथ ब्लड मे लागातार ग्लूकोज बढ़ने से कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जैसे- हृदय रोग, तंत्रिका क्षति और आंखों की समस्या।
2 हार्मोनल असंतुलन (Hormonal Imbalance)
गर्भावस्था के दौरान प्लेसेंटा हार्मोन उत्पन्न होता है, जो इंसुलिन प्रतिरोध का कारण बनता है। यदि अग्न्याशय इंसुलिन प्रतिरोध को दूर करने के लिए पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर सकता है, तो गर्भावस्था में मधुमेह विकसित हो सकता है। अन्य हार्मोन संबंधी स्थितियां जैसे एक्रोमेगली और कुशिंग सिंड्रोम भी टाइप 2 मधुमेह का कारण बन सकती हैं।
3 शारीरिक गतिविधि की कमी (Lack of Physical Activity)
मोटापा, शारीरिक गतिविधि की कमी, आहार, हार्मोनल असंतुलन, आनुवांशिकी और कुछ दवाएं शामिल हैं। कुछ दवाओं के लंबे समय तक उपयोग से भी टाइप 2 मधुमेह हो सकता है, जिसमें एचआईवी/एड्स की दवाएं और कॉर्टिकोस्टेरॉइड शामिल हैं। जेनेटिक म्यूटेशन से नियोनेटल डायबिटीज हो सकता है।
मधुमेह के प्रकार :-
मधुमेह कई प्रकार के होते हैं। जिसमे सबसे आम हैं-टाइप 2 मधुमेह,इसमें शरीर पर्याप्त मात्रा मे इंसुलिन नहीं बना पता है। शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन प्रतिरोध के लिए सामान्य रूप से प्रतिक्रिया नहीं करती हैं। यह मधुमेह का सबसे आम प्रकार है। यह मुख्य रूप से वयस्कों को प्रभावित करता है, लेकिन बच्चों को भी यह हो सकता है।
प्रीडायबिटीज :-
यह टाइप 2 मधुमेह से पहले का चरण है। इसमें रक्त शर्करा का स्तर सामान्य से अधिक होता है। यह इतना अधिक नहीं होता है कि इसे टाइप 2 मधुमेह का दर्जा दिया जा सके।
टाइप 1 मधुमेह :-
यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली अज्ञात कारणों से अग्न्याशय में इंसुलिन-उत्पादक कोशिकाओं पर हमला कर देती है। यह उन्हें नष्ट कर देती है। मधुमेह वाले 10% लोगों में टाइप 1 होता है। यह आमतौर पर बच्चों और युवा वयस्कों में होता है। साथ ही यह किसी भी उम्र में विकसित हो सकता है।
गर्भावस्था मधुमेह :-
यह गर्भावस्था के दौरान होता है। यह आमतौर पर गर्भावस्था के बाद चली जाती है। अगर गर्भावस्था मधुमेह है, तो जीवन में बाद में टाइप 2 मधुमेह होने की संभावना अधिक होती है।
टाइप 3 सी मधुमेह :-
जब पैनक्रियाज ऑटोइम्यून डैमेज का अनुभव करता है। यह इंसुलिन के उत्पादन की क्षमता को प्रभावित करता है। पैनक्रियाज कैंसर, सिस्टिक फाइब्रोसिस और हेमोक्रोमैटोसिस सभी पैनक्रियाज को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जो मधुमेह का कारण बनता है। पैनक्रियाज को हटाने पर टाइप 3 सी होता है।
वयस्कों में अव्यक्त ऑटोइम्यून मधुमेह :-
टाइप 1 मधुमेह की तरह यह भी एक ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया का परिणाम होता है। यह टाइप 1 की तुलना में बहुत धीरे-धीरे विकसित होता है। आमतौर पर यह 30 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों में देखा जाता हैं।
अनुवांशिक :-
इसे मोनोजेनिक मधुमेह भी कहा जाता है। यह विरासत में मिले आनुवंशिक उत्परिवर्तन के कारण होता है। यह शरीर मे इंसुलिन बनाने और उपयोग करने के तरीके को प्रभावित करता है। यह मधुमेह 5% लोगों को प्रभावित करता है और आमतौर पर परिवारों में चलता है।
नवजात मधुमेह :-
यह मधुमेह का एक दुर्लभ रूप है, जो जीवन के पहले छह महीनों के भीतर होता है। यह मोनोजेनिक मधुमेह का ही एक रूप है। नवजात मधुमेह वाले लगभग 50% शिशुओं में आजीवन मधुमेह का रूप होता है, जिसे स्थायी नवजात मधुमेह कहा जाता है। अन्य आधे में शुरुआत के कुछ महीनों के भीतर यह गायब हो जाता है। बाद में जीवन में यह वापस आ सकता है। इसे ट्रांजिएंट नियोनेटल डायबिटीज मेलिटस कहा जाता है।
डायबिटीज की जटिलताएं :-
मधुमेह कई लम्बी स्वास्थ्य जटिलताओं को जन्म दे सकता है। यह मुख्य रूप से अत्यधिक या लंबे समय तक हाई ब्लड शुगर लेवल के कारण हो सकता है।
हापरस्माॅलर हाइपरग्लाइसेमिक अवस्था :-
यह जटिलता मुख्य रूप से टाइप 2 मधुमेह वाले लोगों को प्रभावित करती है। यह तब होता है जब रक्त शर्करा का स्तर बहुत अधिक 600 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर या इससे अधिक होता है। इससे गंभीर डिहाइड्रेशन हो सकती है।
किटोएसिडोसिस :-
यह जटिलता मुख्य रूप से टाइप 1 मधुमेह वाले लोगों को प्रभावित करती है। यह तब होता है जब शरीर में पर्याप्त इंसुलिन नहीं होता है। यदि शरीर में इंसुलिन नहीं है, तो यह ऊर्जा के लिए ग्लूकोज का उपयोग नहीं कर सकता है। इसलिए यह वसा को तोड़ने लगता है। यह प्रक्रिया किटोन्स नामक पदार्थ छोड़ती है, जो रक्त को अम्लीय बना देता है। इससे सांस लेने में तकलीफ, उल्टी और बेहोशी होती है।
निम्न रक्त शर्करा :-
जब ब्लड शुगर लेवल सीमा से नीचे चला जाता है, तो हाइपोग्लाइसीमिया हो जाता है। गंभीर हाइपोग्लाइसीमिया बहुत कम रक्त शर्करा है। यह मुख्य रूप से मधुमेह वाले लोगों को प्रभावित करता है, जो इंसुलिन का उपयोग करते हैं। धुंधली दृष्टि या डबल विजन, दौरे पड़ना और अन्य मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम इसके कारण हो सकती हैं।
लंबे समय तक डायबिटीज की जटिलता :-
रक्त में ग्लूकोज अधिक मात्रा बहुत लंबे समय तक बने रहने पर शरीर के ऊतकों और अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है। यह मुख्य रूप से रक्त वाहिकाओं, ऊतकों और तंत्रिकाओं को नुकसान करता है। इसके कारण हृदय रोग ( हार्ट अटैक,हाई ब्लड प्रेशर, स्ट्रोक आदि)का जोखिम सबसे अधिक होता है। ब्लड ग्लूकोज लेवल के कारण किडनी फेलियर, आंखो में समस्या, पैर की नसों में प्रॉब्लम, बहरापन, मसूड़ों की बीमारी और त्वचा में संक्रमण हो सकता है।
डायबिटीज : लक्षण
- प्यास के कारण मुंह सूखना
- जल्दी-जल्दी पेशाब आना
- लगातार थकान महसूस होना
- दृष्टि का धुंधला होना या ब्लर विजन
- अचानक वजन का बढ़ना या घटना
- हाथों या पैरों में सुन्नपन या झुनझुनी
- घावों या कटने पर उनके ठीक होने में अधिक समय लगना
- स्किन या योनि में यीस्ट इन्फेक्शन होना
डायबिटीज : निदान
डायबिटीज का निदान करने के लिए ब्लड शुगर परीक्षण सुबह खाली पेट किया जाता है। फास्टिंग के दौरान ब्लड शुगर लेवल 99 मिलीग्राम/डीएल या उससे कम है, तो यह सामान्य है। यदि ब्लड शुगर लेवल 100 से 125 मिलीग्राम/डीएल है, तो यह इंगित करता है कि आपको प्रीडायबिटीज है। यदि यह लेवल 126 मिलीग्राम/डीएल या इससे अधिक है, तो यह इंगित करता है कि आपको डायबिटीज है।
डायबिटीज : उपचार
डॉक्टर ग्लूकोज स्तर की जांच कर डायबिटीज की सही मेडिसिन देते हैं। मधुमेह के नियंत्रण के लिए मुख्य रूप से ब्लड शुगर लेवल पर कंट्रोल किया जाता है।
- ग्लूकोज मीटर और फिंगर स्टिक और निरंतर ग्लूकोज मॉनिटर के साथ बार-बार जांच करके लेवल को कंट्रोल किया जा सकता है। मुंह से ली जाने वाली मधुमेह दवाएं रक्त शर्करा स्तर को नियंत्रित कने में मदद करती हैं।
- संतुलित और सही आहार चुनना मधुमेह नियंत्रण के लिए सबसे अधिक जरूरी है। भोजन रक्त शर्करा पर बहुत अधिक प्रभाव डालता है। यदि इंसुलिन लेते हैं, तो खाए जाने वाले भोजन और पेय पदार्थों में कार्ब्स की गिनती करना बेहद जरूरी है। शरीर को एक्टिव रखने के लिए नियमित योग और व्यायाम भी जरूरी है।
- सप्ताह में 5 दिन 30 मिनट तक योगासन या एक्सरसाइज ब्लड ग्लूकोज लेवल पर नियन्त्रण रख सकते हैं। हृदय रोग के जोखिम से बचाव, वज़न नियंत्रण, ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल पर नियन्त्रण डायबिटीज के प्रबंधन के लिए सबसे जरूरी है।
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